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दिल्ली का एकतरफा 2021 ‘मास्टर प्लान’

दिल्ली का एकतरफा 2021 ‘मास्टर प्लान’

10-07-2018 | Neetu Routela  | Intersectional Feminism - Desi Style!

हाल ही में मास्टर प्लान पर होने वाली गोष्टी में लम्बे समय बाद शामिल होने का मौका मिला, जहाँ बड़े-बड़े विषय विशेषज्ञों और ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों को सुनने का मौका मिला| सबके तर्क, सिद्धांत और जज्बे अद्भुत थे| पर मेरे लिए सिर्फ एक बात की हैरानी थी कि क्या बदला है? पिछली बार जब साल 2005-06 में इस तरह के बैठकों में हम शामिल होते थे तब भी यही गहन सवाल, चिंता, रोष औरसुझाव थे| आज भी साल 2021 की तैयारी के लिए हम वहीँ खड़े है तो क्या बदला पहले? और क्या होगा आगे? इन सब बहुत ही मह्त्वपूर्ण प्रयासों को कैसे सच में क्रियान्वित किया जायेगा| खैर सवाल जितना उलझा हुआ है जवाब भी आसान नहीं है| पर मन में मास्टर प्लान को लेकर जो बड़ी साधारण-सी तीन तर्क मुझे समझ आते है वो बांटने की कोशिश कर रही हूँ| शायद जवाब तक ले जाये या सवाल को ही सुलझा दे|

आशा है आप सब मास्टर प्लान के बारे में जानते होंगे फिर भी संक्षेप में,  डी डी ए की स्थापना के साथ साल 1950 में हुई, जिसका मुख्य काम दिल्ली का योजनाबद्ध तरीके से विकास करना था और इस काम के लिए  डी डी ए ने  साल 1962 में दिल्ली मास्टर प्लान का गठन किया, जिसे साल 1982 में संशोधित किया गया|

मास्टर यानी कि जिसकी संसाधनों पर पहुँच और मालिकाना हक़ वाले यानी संपन्न वर्ग|

साल 2001 के प्लान के लिए और 2021 का प्लान तीसरा प्लान है और हर बार की तरह इस प्लान का काम आने वाले 20 सालो में शहर और आबादी कैसे दिखेगी और उनके लिए क्या योजना होनी चाहिए पर काम करना है| इस छोटे से इतिहास के बाद वापस आते है मेरी मास्टर प्लान की समझ पर| मेरे सारे विचार, अपने अवलोकन और इसके नाम के इर्द गिर्द ही घूमते है|

शुरूआती दौर में, मैं सोचा करती थी,  इसका नाम मास्टर प्लान क्यों रखा गया है? और वर्षो की सोच के बाद मुझे इसका तर्क और सटीकता बड़ी दूर की कोड़ी लगती है क्यूंकि मास्टर यानि मालिक| यानी कि वास्तविक अर्थ में अगर गहराई से इस प्लान को परखा जाये तो ये सिर्फ पुरुषों को मद्देनजर या केंद्र में रखकर बनाया गया प्लान है जहाँ औरत के लिए कोई जगह या योजना होती ही नहीं है,  जिसका नतीजा – औरतों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी की अनदेखी है| फिर चाहे वो सार्वजनिक स्थलों या मार्केट  में महिला शौचालयों की बात हो या शहर के डिज़ाइन की बात हो| इन जगह पर आवाजाही या सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात हो, घटिया यातायात प्रबंधन या पैदल पथ जिसपर औरतों की निर्भरता सबसे ज्यादा रहती है| आवास योजनाओं को इस परिवार यूनिट के तौर देखना जहाँ एकल महिला के लिए कोई जगह नहीं है| बच्चे जो आज भी औरतों की ही प्राथमिक जिम्मेदारी रहते है उनके सुरक्षा या देखभाल के इंतजाम की बात हो क्यूंकि ये औरतों का काम है| इसके लिए किसी योजना या प्रणाली  की क्या जरुरत? और अगर बच्चों के साथ इस मूलभूत सुविधा की अनदेखी के कारण यौनिक या अन्य अपराध हो तो महिला को जिम्मेदार ठहरा दो “बस”| कई ऐसी वजहें  है जो इस मास्टर प्लान को इस सोच से संचालित और क्रियान्वित करती है| पर यही जरुरत है इस प्लान को पुरुष नहीं बल्कि जेंडर और जेंडर आधारित रोजमर्रा की ज़िन्दगी के नजरिये से देखा और बनाया जाये|

इस मास्टर ने ना तो आधी आबादी पर गौर किया ना निचले तबके पर तो क्या ये एक ऐसा प्लान है जिसका कोई तोड़ नहीं है|

मास्टर यानी कि जिसकी संसाधनों पर पहुँच और मालिकाना हक़ वाले यानी संपन्न वर्ग|  वास्तविक अर्थ में देखा जाये तो हर मास्टर प्लान यही साबित करता है कि गरीबों को जितना हो सके दिल्ली के सरहदों पर धकेलो| नतीजा विस्थापन, बेरोजग़ारी, पुनर्वास के नाम पर तोड़-फोड़ और उखाड़ फेंकना और जितना हो सके सुविधा संपन्न वर्ग के लिए साधन और सुविधाओं का विस्तार करना|

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इसका सबसे बड़ा सबूत है, विकास के अलग-अलग मानदंडों और मानकों का इस्तेमाल जगह और स्तर के हिसाब से में साफ़ दिखता है – जैसे – जहाँ दक्षिण दिल्ली और बस्ती के क्षेत्रफल का विकास मानक देखें जहाँ दक्षिण दिल्ली खुलेपन को बढ़ावा देता है| वही बस्तियां और बहुमंजिला योजना को विस्तार देती है| ऐसे कई पहलू है जो साफ़ इशारा करते है मास्टर प्लान वास्तव में किसके लिए है जरूरत है समान मानक सबके लिये उपयोग किये जाये और हर वर्ग जो हाशिये पर है उसे उसकी पहचान के आधार पर स्वीकार किया जाये और उसकी वास्तविक रोजमर्रा की ज़िन्दगी को ध्यान में रखकर उसे शहर का उसी के रूप में हिस्सा मानकर योजना बनायीं जाये|

मास्टर प्लान का शाब्दिक अर्थ मुझे दो तरह से समझ आता है| एक जो योजना हर पहलू पर गौर करे या जिसका कोई तोड़ ना हो| अब तक इतना तो समझ आता है कि इस मास्टर ने ना तो आधी आबादी पर गौर किया ना निचले तबके पर तो क्या ये एक ऐसा प्लान है जिसका कोई तोड़ नहीं है| कई बार लोगों को कहते सुना है कि ये बड़ी अनियोजित प्रक्रिया का शिकार है| पर मुझे ऐसा नहीं लगता बल्कि ये बड़े सुनोयोजित तरीके से चलने वाली 20 वर्षीय योजना है, जो हमेशा अंत समय में लोगो के सामने पहुँचती है, जो कभी समय अभाव या अनियोजन के ना पर वही करती है तो करना चाहती  है तो इस सन्दर्भ में भी मास्टर प्लान बड़ा सटीक चुनाव है| बस जरुरत है अनियोजियत या फिर समयाभाव से जूझते हुए ही सही ज़मीन पर काम करने वाले सभी साथिओ को आगे आकर, एकजुट होकर आधी आबादी और हर वर्ग की हिस्सेदारी इस योजना में शामिल करने की ताकि आने वाले 20 सालो में कुछ बदलाव, बराबरी और हक़दारी के उम्मीद की जा सके इस मास्टर प्लान से|

लेखः नीतू रौतेला